Saturday, 12 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता का नामकरण व विस्तार (भारत का इतिहास भाग-2)

  • सिन्धु घाटी सभ्यता का नामकरण:सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। हङप्पा और मोहनजोदाङो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले है। अतः विद्धवानो ने इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक,नदियों के क्षेत्र में अाते है,पर बाद में
    रोपङ,लोथल,रंगापुर,कालीबंगा,बनमाली आदी क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र के बाहर थे। कई इतिहासकार इस सभ्यता को 'हङप्पा सभ्यता' नाम देना अधिक उचित मानते है क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में अवस्थित हङप्पा नामक आधुनिक स्थल में चला। हङप्पा का मुख्य क्षेत्र सिन्धु घाटी नहीं बल्कि सरस्वती तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था जो सिन्धु व गंगा के बिच स्थित था। इस लिए कुछ विद्वानों ने सिन्धु-सरस्वती सभ्यता भी कहते है। सिन्धुवासीयों ने प्रथम बार तांबे मे टीन मिलाकर कांसा तैयार किये। अतः इसे 'कांस्य युगीन सभ्यता' भी कहा जाता है। सिन्धु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रांति भी कहा जाता है,क्योंकि भारत में प्रथम बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुअा।
  • विस्तार:  इस सभ्यता का क्षेत्र संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से अनेक गुना बङा और विशाल था। इस परिपक्य सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ।इस प्रकार हङप्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब,सिन्ध और ब्लूचिस्तान के भाग ही नहीं, गुजरात,राजस्थान,हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में ब्लूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें समपूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था(उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में गुजरात के भोगतार तक और पश्चिम में अफगानिस्तान के सुत्कोगंडोर से पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ तक था और इसका क्षेत्रफल 12,88,600वर्ग किलोमीटर था।) पंजाब का हङप्पा तथा सिन्ध का
  • मोहनजोदाङो(शाब्दिक अर्थ-प्रेतों का टीला) दोनो ही स्थान
     वर्त्तमान में पाकिस्तान में है।दोनो एक दूसरे से 483 कि मी दूर थे और सिन्धु नदी द्रवारा जुङे हुए थे। तीसरा नगर मोनजोदाङो से 130किमी दक्षिण में चन्हूदङो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खम्भा की खाङी के ऊपर लोथल नामक स्थल पर। इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगा (शाब्दिक अर्थ- काले रंग की चुङीया) तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली।इन सभी स्थलो पर परिपक्य तथा उन्नत हङप्पा संस्कृति के दर्शन होते है। सुत्कोगंडोर तथा सुरकोटरा के समुंद्रतटीय नगरों मे भी इस संकृति की परिपक्य अवस्था दिखाई देती है। इन दोनो की विशेषता है कि एक-एक नगर दुर्ग का होना। इसके अतिरिक्त, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में अवस्थित धोलावीरा में भी किला है, और इस स्थल पर हङप्पा संस्कृति की तीनों अवस्थाएँँ मिलती हैं। उत्तर हङप्पा अवस्था गुजरात के काठियवाङ  प्रायद्धिप में रंगपुर और रोजङी स्थलो पर भी पायी गई है।
  • विभिन्न विद्वानों द्वारा सिन्धु सभ्यता का निर्धारण:
   काल                                           विद्वान
1. 2000-1500ई.पू.                        फेयर सर्विस
2. 2300-1750ई.पू.                        डी.पी. अग्रवाल
3. 2300-1700ई.पू.                         सी.जे. गैड
4. 2500-1500ई.पू.                         मार्टीमर हृीलर
5. 2800-2500ई.पू.                        अर्नेस्ट मैके
6. 2900-1900ई.पू.                        डेल्स
7. 3200-2700ई.पू.                         जॉन मार्शल
8. 3500-2700ई.पू.                         माधोस्वरुप वत्स

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