Saturday, 19 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन,व्यापार-वाणिज्य,धार्मिक जीवन व सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण (भाग -4)

आर्थिक जीवन:
कृषि:.  सिन्धु सभ्यता के लोग कृषि करनें के तरीको से परिचित थे। 'कपास की खेती' सर्वप्रथम सिन्धुवासी ने की थी।इसलिए मेसोपोटामिया में कपास के लिए सिन्धु शब्द का प्रयोग किया जाने लगा तथा यूनानियों ने इसे सिंडन कहा जो सिन्धु शब्द  का ही यूनानी  रूपान्तर था। सिन्धु सभ्यता के लोग हल के प्रयोग से परिचित थे। कालीबंगा के प्राक्- सिन्ध स्तर से हल से जुते खेत तथा उनमें सरसों के साक्ष्य मिले है। सिन्धु सभ्यता के लोग चावल,गेहूँ,जौ,मटर,राई,रागी,बाजरे आदि अनाजो की खती करते थे। लोथल व रंगपुर से चावल की खेती,वनावली से जौ और तील की खेती,लोथल एंव सौराष्ट से बाजरे की खेती एंव रोजदी (गुजरात) से रागी की खेती का साक्ष्य मिले है। वे लोग दो किस्म के गेहूँ की खेती करते थे। बनावली से मिले जौ काफी उन्नत किस्म के थे। सिन्धुवासी खेती के लिए हल तथा फसल कटाई के लिए पत्थर के हसिया का प्रयोग करते थे।
 शुपालन:  सिन्धु सभ्यता के लोग पशुपालन से अवगत थे। वे हाथी,घोङा,हिरण,गैंडा,बाघ,भैंसा,भालू,खरहा आदि जंगली जानवरों से भी परिचित थे लेकिन वे उन्हें पालतू बनाने में सफल नहीं हो सके थे। मुहरो,ताम्र तश्तरियों अादि पर अंकित चित्रों से जानवरों के होने की पुष्टी होती है।
गाय-बैल, बकरी,सुअर,और भेङ को पाला जाता था। सुरकोटदा से घोङे के अस्थि पंजर व राणाघुंडई से घोङे के दांत के अवशेष मिले हैं। लोथल व रंगपुर से घोङे की मृण्मूर्तियां मिली है।  
 व्यापार-वाणिज्य:  सिन्धु सभ्यता के लोग व्यापार करने में सक्षम थे। उस सभ्यता में सिक्कों का प्रचलन नहीं था इसलिए क्रय-विक्रय वस्तु-विनिमय के माध्यम से होता था। मोनजोदङो से मिटृी की 2 पहियों वाली खिलौना गाङी,कांसे की दो पहियों वाली खिलौना गाङी एंव चन्हूदङो से मिटृी की 4 पहियों वाली खिलौना गाङी मिली हैं। लोथल के अलवेस्टर पत्थर का एक बङा पहिया व वणाबली से सङको पर बैलगाङी के पहिये के निशान मिले है। इससे यह अनुमान होता है कि सिन्धुवासी व्यापार के लिए बैलगाङी का इस्तेमाल करते होंगे।
मोनजोदङो से प्राप्त एक मुहर पर नांव के चित्रांकन व लोथल से प्राप्त मिटृी निर्मित खिलौना नांव से यह प्रमाणित होता है कि सिन्धुवासी आंतरिक व बाह्म व्यापार के लिए नांव का इस्तेमाल करते थे। व्यापारिक विस्तुओं की गांठ पर शिल्पियों व व्यापारियो द्वारा अपनी मुहर की छाप लगाने की प्रथा थी। लोथल से इस तरह के कई मुहरबंदी मिली है। मेसोपोटामिया (ईराक) से व्यापारिक संपर्क स्थल व समुद्री दोनो मार्गों से था।सिन्धु सभ्यता एंव मेसोपोटामिया के बिच होने वाले व्यापार में अफगानिस्तान और ईरान के क्षेत्रों के मध्यवर्ती भूमिका थी जबकि जल मार्ग से होने वाले व्यापार में फारस की खाङी में स्थित बहरीन द्वीप की मध्यवर्ती भूमिका थी।
धार्मिक जीवन: मोनजोदङो से प्राप्त मुहर पर स्वास्तिक का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीक माना जाता है। हिंदु धर्म में आज भी स्वास्तिक को पवित्र मांगलिक चिन्ह माना जाता है इसे चतुर्भुज ब्रह्मा का रूप माना जाता है। हङप्पा से प्राप्त एक मुर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा है इतिहासकारों का मानना है कि यह पृथ्वी देवी की प्रतीमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म व वृद्धि से रहा होगा। हङप्पाई लोग इसे पृथ्वी की उर्वरता देवी मानते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस की पूजा करते थे। सिन्धु सभ्यता के नगरों की खुदाई से किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है लेकिन मोनजोदङो से प्राप्त शाम्भवी मुद्रा में ध्यानत योगी की प्रस्तर मूर्ति मुहर जिस पर पद्मासन मुद्रा में योगी का अंकन आदि से यह प्रमाणित होता है कि सिन्धुवासी योग से परिचित थे। सिन्धु सभ्यता में मृतको के अंतीम संस्कार की प्रथा थी। यह प्रथा 3 तरह से होता थी
1. दाह-संस्कार:  इसमे शव को पूण रूप से जलाने के बाद भस्मावशेष को मिटृी के पात्र में रखकर दफना दिया जाता था (हिन्दु विधी से मिलती प्रथा)। यह सर्वप्रमुख प्रथा थी।
2. पूर्ण समाधिकरण: इसमे संपूर्ण शव को भूमी में दफना दिया जाता था (मुस्लिम विधी से मिलती प्रथा)
3. आंशिक समाधिकरण: इसमे पशु-पक्षीयों के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमी में दफना दिया जाता था। (पारसी विधी से मिलती प्रथा)
 लोथल, कालीबंगा अादि जगहों पर हवन-कुंड मिले है जो इस उनके वैदिक होने के प्रमाण देते है। 
सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण:
सिन्धु सभ्यता एक प्राचीन और विकसित सभ्यता थी। इसके पतन का कारण पर इतिहासकारों का अलग-अलग मत है।
इतिहासकार:
फेयर सर्विस: वनों का कटाव, संसाधन में कमी, पारिस्थितिक असंतुलन पतन का कारण था।
मार्टिन व्हीलर: हङप्पा सभ्यता का आकस्मिक अंत था।
मार्टिन व्हीलर: ङप्पा सभ्यता का आधार विदेशी था।
जॉन मार्शल:  विनाश के लिए भुकंप उत्तरदायी था।
जॉन मार्शल: प्रशासनिक शिथिलता के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ।
ऑरेल स्टाइन: जलवायु परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।
एम.आर.साहनी,राइक्स व डेल्स: भू-तात्विक परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।
डी.डी.कौशम्बी: मोनजोदङो के लोगों की आद लगा कर लोगों की हत्या कर दी गयी।
गार्डन चाइल्ड व हृीलर: सैन्धव सभ्यता विदेशी आक्रमण से नष्ट हुई।

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