सिन्धु सभ्यता के पतन के बाद भारत में जिस प्राचीन सभ्यता का विकास हुअा उसे वैदिक सभ्यता या आर्यं सभ्यता कहा जाता है। यह सभ्यता आर्यों द्धारा निर्मित होने के कारण इसे आर्यं सभ्यता कहते है तथा इस सभ्यता की जानकारी हमे वेदो से मिलती है इस लिए वैदिक सभ्यता भी कहा जाता है। वैदिक सभ्यता एक ग्रामिण सभ्यता थी। 1500ई.पू. से 600ई.पू़. तक के काल को वैदिक सभ्यता माना जाता है।
- वैदिक सभ्यता अर्थात वैदिक काल को दो भागो मे बॉटा गया है-
- ऋग्वैदिक काल: 1500ई. पू.-1000ई. पू. तक।
- उत्तर वैदिक काल: 1000ई. पू.-600ई. पू.तक।
ऋग्वैदिक काल (1500ई.पू.-1000ई.पू.)
-ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था। परिवार पित्तृ-सत्तात्मक होता था।
-यह ग्रामिण सभ्यता थी जिसका मुख्य व्यवसाय पशुपालन था।
-इस सभ्यता के निर्माता आर्यों को माना जाता है। आर्य शब्द 'अरि' से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ सर्वोत्तम होता है।
-ऋग्वैदिक काल में वर-वधु के सम्मिलित रूप को 'अभ' कहा जाता था।
-जीवन भर अविवाहित लङकी को अमाजू कहते थे।
-ऋग्वैदिक काल के लोग शाकाहारी व मांसाहारी दोनो प्रकार के भोजन करते थे।
-संगीत इस काल के मनोरंजन का साधन था।
-इस काल के लोग नमक,चावल व मछली का सेवन नहीं करते थे।
-ऋग्वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वैदिक नदियां
1. क्रुमु कुर्रम
2. कुभा काबुल
3. वितस्ता झेलम
4. असिकनी चिनाव
5. परूष्णी रावी
6. शतुद्रि सतलज
7. विपाशा व्यास
8. सदानीरा गंडक
9. दृष्टावती घग्घर
10. गोमती गोमल
11. सुवस्तु स्वात
12. सिन्धु सिन्ध
13. सरस्वती घग्घर
14. सुषोमा सोहल
15. मरूद्वृधा कमरुवर्मन
- ऋग्वैदिक देवताए
- आकाश के देवता: धौस, वरूण, मित्र, सूर्य, सवितृ, पूषण, विष्णु, आदित्य, उषा, अश्विन।
- अंतरिक्ष के देवता: इन्द्र, रूद्र, वायु-वात, पर्जन्य, आप:, यम, प्रजापति, आदिति।
- पृथ्वी के देवता: पृथ्वी, अग्नि, सोम, वृहस्पति, अपानपात्, मातरिश्वन तथा नदियों के देवता।
- प्रमाण: बोगज कोई अभिलेख (1400ई.पू.) में अनेक वैदिक देवताओं (मित्र, वरूण, इंद्र) का उल्लेख किया गया है। इन देवताओं का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।
सभा:
- ऋग्वेद में सभा शब्द का 8 बार प्रयोग हुअा है। ऋग्वैदिक युग में इसका सर्वाधिक महत्व था। इसमे पुरूष और स्त्री दोनों का प्रवेश संभव था।
- सभा के पुरूष सदस्यों के लिए सभेय शब्द और स्त्री सदस्यों के लिए सभावती शब्द आया है। उत्तर वैदिक काल में भी इसका महत्व बना रहा।
समिति:
- ऋग्वेद में समिति शब्द का उल्लेख 9 बार हुअा है,पर उत्तरवैदिककाल में इसका महत्व बढ़ता हुअा प्रतीत होता है। अर्थवेद में सभा व समिति को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है। अर्थवेद में ही इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि समिति में स्त्रियों का प्रवेश भी संभव था।
- समिति एक महत्वपूर्ण व प्रभावी संस्था थी,इसका प्रमाण है कि वेदों में राजा को समिति से सहयोग प्राप्त करने के लिए बताया गया है। समिति में साधारण व्यक्तियों का प्रवेश भी संभव था, जबकि सभा में विशिष्ट एंव समृद्ध लोगों की अनुमति थी।
विदथ:
- ऋग्वैदिक काल में ही इस संस्था का प्रचलन अधिक था। इस बात का प्रमाण है कि ऋग्वेैद में विदथ पद का प्रयोग 122 बार हुअा है, जबकि आरण्य ग्रंथो के चरण में आकर इसका प्रयोग लगभग लुप्त हो गया है। विदथ को विशिष्ट संस्था के रुप में माना गया है, जिसमें वृद्धों एंव विद्धानों की सहभागिता होती थी।
- विदथ में भी स्त्रियों के प्रवेश के प्रमाण मिलते हैं। विदथ में अधिकांशत: आध्यात्मिक विचार- विमर्श ही होता था। उत्तर वैदिक काल में इसे समाप्त कर दिया गया।