Monday, 28 August 2017

वैदिक काल अथवा वैदिक सभ्यता(भाग-1)

सिन्धु सभ्यता के पतन के बाद भारत में जिस प्राचीन सभ्यता का विकास हुअा उसे वैदिक सभ्यता या आर्यं सभ्यता कहा जाता है। यह सभ्यता आर्यों द्धारा निर्मित होने के कारण इसे आर्यं सभ्यता कहते है तथा इस सभ्यता की जानकारी हमे वेदो से मिलती है इस लिए वैदिक सभ्यता भी कहा जाता है। वैदिक सभ्यता एक ग्रामिण सभ्यता थी। 1500ई.पू. से 600ई.पू़. तक के काल को वैदिक सभ्यता माना जाता है।
  • वैदिक सभ्यता अर्थात वैदिक काल को दो भागो मे बॉटा गया है-
  1. ऋग्वैदिक काल: 1500ई. पू.-1000ई. पू. तक।
  2. उत्तर वैदिक काल: 1000ई. पू.-600ई. पू.तक।
ऋग्वैदिक काल (1500ई.पू.-1000ई.पू.)
-ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था। परिवार पित्तृ-सत्तात्मक होता था।
-यह ग्रामिण सभ्यता थी जिसका मुख्य व्यवसाय पशुपालन था।
-इस सभ्यता के निर्माता आर्यों को माना जाता है। आर्य शब्द 'अरि' से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ सर्वोत्तम होता है।
-ऋग्वैदिक काल में वर-वधु के सम्मिलित रूप को 'अभ' कहा जाता था।
-जीवन भर अविवाहित लङकी को अमाजू कहते थे।
-ऋग्वैदिक काल के लोग शाकाहारी व मांसाहारी दोनो प्रकार के भोजन करते थे।
-संगीत इस काल के मनोरंजन का साधन था।
-इस काल के लोग नमक,चावल व मछली का सेवन नहीं करते थे।
-ऋग्वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता है।
  •       ऋग्वैदिक नदियां
        प्राचीन नाम        आधुनिक नाम
   1.  क्रुमु                     कुर्रम
   2. कुभा                     काबुल
   3. वितस्ता                 झेलम
   4. असिकनी               चिनाव
   5. परूष्णी                 रावी
   6. शतुद्रि                   सतलज
   7. विपाशा                 व्यास
   8. सदानीरा               गंडक
   9. दृष्टावती               घग्घर
  10. गोमती                गोमल
  11. सुवस्तु                 स्वात
  12. सिन्धु                  सिन्ध
  13. सरस्वती              घग्घर
  14. सुषोमा               सोहल
  15. मरूद्वृधा             कमरुवर्मन 
  • ऋग्वैदिक देवताए
  1. आकाश के देवता:  धौस, वरूण, मित्र, सूर्य, सवितृ, पूषण, विष्णु, आदित्य, उषा, अश्विन।
  2. अंतरिक्ष के देवता:  इन्द्र, रूद्र, वायु-वात, पर्जन्य, आप:, यम, प्रजापति, आदिति।
  3. पृथ्वी के देवता:  पृथ्वी, अग्नि, सोम, वृहस्पति, अपानपात्, मातरिश्वन तथा नदियों के देवता।
  4. प्रमाण:  बोगज कोई अभिलेख (1400ई.पू.) में अनेक वैदिक देवताओं (मित्र, वरूण, इंद्र) का उल्लेख किया गया है। इन देवताओं का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।
ऋग्वैदिक कालीन राजव्यवस्था
सभा:
- ऋग्वेद में सभा शब्द का 8 बार प्रयोग हुअा है। ऋग्वैदिक युग में इसका सर्वाधिक महत्व था। इसमे पुरूष और स्त्री दोनों का प्रवेश संभव था।
- सभा के पुरूष सदस्यों के लिए सभेय शब्द और स्त्री सदस्यों के लिए सभावती शब्द आया है। उत्तर वैदिक काल में भी इसका महत्व बना रहा।
समिति:
-  ऋग्वेद में समिति शब्द का उल्लेख 9 बार हुअा है,पर उत्तरवैदिककाल में इसका महत्व बढ़ता हुअा प्रतीत होता है। अर्थवेद में सभा व समिति को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है। अर्थवेद में ही इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि समिति में स्त्रियों का प्रवेश भी संभव था।
-  समिति एक महत्वपूर्ण व प्रभावी संस्था थी,इसका प्रमाण है कि वेदों में राजा को समिति से सहयोग प्राप्त करने के लिए बताया गया है। समिति में साधारण व्यक्तियों का प्रवेश भी संभव था, जबकि सभा में विशिष्ट एंव समृद्ध लोगों की अनुमति थी।
विदथ:
-  ऋग्वैदिक काल में ही इस संस्था का प्रचलन अधिक था। इस बात का प्रमाण है कि ऋग्वेैद में विदथ पद का प्रयोग 122 बार हुअा है, जबकि आरण्य ग्रंथो के चरण में आकर इसका प्रयोग लगभग लुप्त हो गया है। विदथ को विशिष्ट संस्था के रुप में माना गया है, जिसमें वृद्धों एंव विद्धानों की सहभागिता होती थी।
-  विदथ में भी स्त्रियों के प्रवेश के प्रमाण मिलते हैं। विदथ में अधिकांशत: आध्यात्मिक विचार- विमर्श ही होता था। उत्तर वैदिक काल में इसे समाप्त कर दिया गया।

Wednesday, 23 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -5)

सिन्धु घाटी सभ्यता से जुङे  महत्वपूर्ण प्रश्न:
1. हङप्पा सभ्यता का प्रचलित नाम कौन-सा है?
उत्तर- सिन्धु घाटी की सभ्यता
2. हङप्पा की सभ्यता की खोज सर्वप्रथम किसने की है?
उत्तर-दयारामस साहनी
 3. हङप्पा की सभ्यता की खोज किस वर्ष हुई थी?
उत्तर- 1921ई.
 सिन्धु की सभ्यता का काल कब से कब तक मामा जाता है?
उत्तर- 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू.
5. सिन्धु की घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसा क्या था?
उत्तर- व्यापार
6. हङप्पा के लोग कौन-सी फसल में सबसे आगे थे?
उत्तर- कपास
7. सिन्धु की घाटी सभ्यता में घर किससे बने थे?
उत्तर- ईंटों से
8. सिन्धु सभ्यता का कौन-सा स्थान भारत में स्थित है?
उत्तर- लोथल
9. भारत में खोजा गया सबसे पहला पुराना शहर कौन-सा था?
उत्तर- हङप्पा
10. भारत में चाँदी की उपलब्धता के साक्ष्य कहाँ मिले थे?
उत्तर- हङप्पा की संस्कृति में
11. हङप्पा के लोग कौन-सी खेल में रूचि रखते थे?
उत्तर- शतरंज
12. सिन्धु की सभ्यता में एक बङा स्नानघर कहाँ मिला था?
उत्तर- मोनजोदङो में
13. सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से अपरिचित थे?
उत्तर- लोहा
14.मोहनजोदङो को एक अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर- मृतको का टीला
15. राखीगढी़ भारत के किस राज्य में है?
उत्तर- हरियाणा
16. मांडा किस नदी  पर स्थित था?
उत्तर- चिनाब पर
17. सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे बङा स्थल कौन-सा है?
उत्तर- मोनजोदङो(पाकिस्तान)
18. सिन्धु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल कौन-सा है?
उत्तर- अल्लाहदीनों(पाकिस्तान)
19. सिन्धु सभ्यता में सर्वप्रथम घोङे के अवशेष कहाँ मिले थे?
उत्तर- सुरकोटदा
20. सिन्धु सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे?
उत्तर- पशुपति
21. हङप्पा की सभ्यता में हल से जुते खेत का साक्ष्य कहाँ मिला था?
उत्तर- कालीबंगा
22. सिन्धु सभ्यता में कितने नगर थे?
उत्तर- 6
23. सिन्धु सभ्यता के मुख्य कौन-सी था?
उत्तर- गेहूँ तथा जौ
24. हङप्पा के लोगों की सामाजिक पद्धति कैसी थी?
उत्तर- उचित समतावदी
25. हङप्पा की सभ्यता किस युग की सभ्यता थी?
उत्तर- कांस्य युग
26. किस पशु के अवशेष सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त नहीं हुए?
उत्तर- शेर
27. हङप्पा का प्रमुख नगर कालीबंगा किस राज्य में है?
उत्तर- राजस्थान
28. हङप्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल  कितना है?
उत्तर- 13 लाख वर्ग कि.मी.
29. हङप्पन लिपी कैसे लिखी जाती थी?
उत्तर- दाएं से बाएं की ओर
30. मोनजोदङो में मिली सङकों की चौङाई क्या है?
उत्तर- 10.5 मीटर
31. हङप्पा के तुरंत बाद मिलने वाले दूसरे प्रसिद्ध स्थल कौन-सा है?
उत्तर- मोनजोदङो
32. हङप्पा के लोग घरों एंव नगरों के विन्यासन के लिए किस पद्धति को अपनाते थे?
उत्तर- ग्रीड पद्धति को
33. सैंधव स्थलोंं के उत्खन्न से प्राप्त  मुहरों  पर किस पशु का प्रकीर्णन सर्वाधिक हुअा?
उत्तर- बैल
34. सैंधव सभ्यता की ईंटों का अलंकरण किस स्थान से प्राप्त हुअा?
उत्तर- कालीबंगा
35. सिन्धु सभ्यता में सिक्के ना होने के कारण व्यापार का साधन क्या था?
उत्तर- वस्तु विनिमय द्धारा
36. मोनजोदङो का उत्खन्न कब हुअा?
उत्तर- 1922
37. हङप्पा संस्कृति के अंतर्गत  सबसे प्राचीन स्थान किस राज्य में पाए गए है?
उत्तर- हरियाणा राज्य के हिसार जिले में
38.सिन्धु घाटी सभ्यता के किन दो नगरों को यूनेस्को वल्र्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया है?
उत्तर- हङप्पा तथा मोनजोदङो
39. हङप्पा संस्कृति के लोगों की अनुमानित संख्या क्या था?
उत्तर- 50 लाख के करीब
40. सिन्धु घाटी सभ्यता किस नदी पर विकसित हुई थी तथा उस नदी के नाम पर इसका क्या नाम पङा?
उत्तर- सरस्वती नदी (यह सिन्धु- सरस्वती सभ्यता के नाम से भी प्रसिद्ध है)
41. हङप्पा का क्षेत्र वर्त्तमान में किस देश में पङता है?
उत्तर- पाकिस्तान के पंजाब में
42. हङप्पा की सभ्यता किस युग की सभ्यता थी?
उत्तर- ताम्र युग
43. हङप्पावासियों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया?
उत्तर- ताँबे का
44. हङप्पा की सभ्यता में मुहरे किससे बनी थी?
उत्तर- सेलखङी से
45. हङप्पा सभ्यता में 'विशाल स्नानागार' का साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुअा है?
उत्तर- मोनजोदङो
46. आजादी के बाद भारत के किस राज्य में सबसे अधिक हङप्पा सम्बंधित क्षेत्र मिले है?
उत्तर- गुजरात में
47. हङप्पा संस्कृति की भाषा को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर- हङप्पन भाषा
48. सिन्धु सभ्यता के लोग मिटृी के बर्तनों पर किस रंग का प्रयोग करते थे?
उत्तर- लाल रंग
49. नखलिस्तान सिन्धु सभ्यता के किस स्थान को कहा जाता है?
उत्तर- मोनजोदङो
50. किस हङप्पा सभ्यता स्थल से'कास्य नर्तकी की मूर्ति' प्राप्त हुई है?
उत्तर- मोनजोदङो

Saturday, 19 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन,व्यापार-वाणिज्य,धार्मिक जीवन व सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण (भाग -4)

आर्थिक जीवन:
कृषि:.  सिन्धु सभ्यता के लोग कृषि करनें के तरीको से परिचित थे। 'कपास की खेती' सर्वप्रथम सिन्धुवासी ने की थी।इसलिए मेसोपोटामिया में कपास के लिए सिन्धु शब्द का प्रयोग किया जाने लगा तथा यूनानियों ने इसे सिंडन कहा जो सिन्धु शब्द  का ही यूनानी  रूपान्तर था। सिन्धु सभ्यता के लोग हल के प्रयोग से परिचित थे। कालीबंगा के प्राक्- सिन्ध स्तर से हल से जुते खेत तथा उनमें सरसों के साक्ष्य मिले है। सिन्धु सभ्यता के लोग चावल,गेहूँ,जौ,मटर,राई,रागी,बाजरे आदि अनाजो की खती करते थे। लोथल व रंगपुर से चावल की खेती,वनावली से जौ और तील की खेती,लोथल एंव सौराष्ट से बाजरे की खेती एंव रोजदी (गुजरात) से रागी की खेती का साक्ष्य मिले है। वे लोग दो किस्म के गेहूँ की खेती करते थे। बनावली से मिले जौ काफी उन्नत किस्म के थे। सिन्धुवासी खेती के लिए हल तथा फसल कटाई के लिए पत्थर के हसिया का प्रयोग करते थे।
 शुपालन:  सिन्धु सभ्यता के लोग पशुपालन से अवगत थे। वे हाथी,घोङा,हिरण,गैंडा,बाघ,भैंसा,भालू,खरहा आदि जंगली जानवरों से भी परिचित थे लेकिन वे उन्हें पालतू बनाने में सफल नहीं हो सके थे। मुहरो,ताम्र तश्तरियों अादि पर अंकित चित्रों से जानवरों के होने की पुष्टी होती है।
गाय-बैल, बकरी,सुअर,और भेङ को पाला जाता था। सुरकोटदा से घोङे के अस्थि पंजर व राणाघुंडई से घोङे के दांत के अवशेष मिले हैं। लोथल व रंगपुर से घोङे की मृण्मूर्तियां मिली है।  
 व्यापार-वाणिज्य:  सिन्धु सभ्यता के लोग व्यापार करने में सक्षम थे। उस सभ्यता में सिक्कों का प्रचलन नहीं था इसलिए क्रय-विक्रय वस्तु-विनिमय के माध्यम से होता था। मोनजोदङो से मिटृी की 2 पहियों वाली खिलौना गाङी,कांसे की दो पहियों वाली खिलौना गाङी एंव चन्हूदङो से मिटृी की 4 पहियों वाली खिलौना गाङी मिली हैं। लोथल के अलवेस्टर पत्थर का एक बङा पहिया व वणाबली से सङको पर बैलगाङी के पहिये के निशान मिले है। इससे यह अनुमान होता है कि सिन्धुवासी व्यापार के लिए बैलगाङी का इस्तेमाल करते होंगे।
मोनजोदङो से प्राप्त एक मुहर पर नांव के चित्रांकन व लोथल से प्राप्त मिटृी निर्मित खिलौना नांव से यह प्रमाणित होता है कि सिन्धुवासी आंतरिक व बाह्म व्यापार के लिए नांव का इस्तेमाल करते थे। व्यापारिक विस्तुओं की गांठ पर शिल्पियों व व्यापारियो द्वारा अपनी मुहर की छाप लगाने की प्रथा थी। लोथल से इस तरह के कई मुहरबंदी मिली है। मेसोपोटामिया (ईराक) से व्यापारिक संपर्क स्थल व समुद्री दोनो मार्गों से था।सिन्धु सभ्यता एंव मेसोपोटामिया के बिच होने वाले व्यापार में अफगानिस्तान और ईरान के क्षेत्रों के मध्यवर्ती भूमिका थी जबकि जल मार्ग से होने वाले व्यापार में फारस की खाङी में स्थित बहरीन द्वीप की मध्यवर्ती भूमिका थी।
धार्मिक जीवन: मोनजोदङो से प्राप्त मुहर पर स्वास्तिक का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीक माना जाता है। हिंदु धर्म में आज भी स्वास्तिक को पवित्र मांगलिक चिन्ह माना जाता है इसे चतुर्भुज ब्रह्मा का रूप माना जाता है। हङप्पा से प्राप्त एक मुर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा है इतिहासकारों का मानना है कि यह पृथ्वी देवी की प्रतीमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म व वृद्धि से रहा होगा। हङप्पाई लोग इसे पृथ्वी की उर्वरता देवी मानते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस की पूजा करते थे। सिन्धु सभ्यता के नगरों की खुदाई से किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है लेकिन मोनजोदङो से प्राप्त शाम्भवी मुद्रा में ध्यानत योगी की प्रस्तर मूर्ति मुहर जिस पर पद्मासन मुद्रा में योगी का अंकन आदि से यह प्रमाणित होता है कि सिन्धुवासी योग से परिचित थे। सिन्धु सभ्यता में मृतको के अंतीम संस्कार की प्रथा थी। यह प्रथा 3 तरह से होता थी
1. दाह-संस्कार:  इसमे शव को पूण रूप से जलाने के बाद भस्मावशेष को मिटृी के पात्र में रखकर दफना दिया जाता था (हिन्दु विधी से मिलती प्रथा)। यह सर्वप्रमुख प्रथा थी।
2. पूर्ण समाधिकरण: इसमे संपूर्ण शव को भूमी में दफना दिया जाता था (मुस्लिम विधी से मिलती प्रथा)
3. आंशिक समाधिकरण: इसमे पशु-पक्षीयों के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमी में दफना दिया जाता था। (पारसी विधी से मिलती प्रथा)
 लोथल, कालीबंगा अादि जगहों पर हवन-कुंड मिले है जो इस उनके वैदिक होने के प्रमाण देते है। 
सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण:
सिन्धु सभ्यता एक प्राचीन और विकसित सभ्यता थी। इसके पतन का कारण पर इतिहासकारों का अलग-अलग मत है।
इतिहासकार:
फेयर सर्विस: वनों का कटाव, संसाधन में कमी, पारिस्थितिक असंतुलन पतन का कारण था।
मार्टिन व्हीलर: हङप्पा सभ्यता का आकस्मिक अंत था।
मार्टिन व्हीलर: ङप्पा सभ्यता का आधार विदेशी था।
जॉन मार्शल:  विनाश के लिए भुकंप उत्तरदायी था।
जॉन मार्शल: प्रशासनिक शिथिलता के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ।
ऑरेल स्टाइन: जलवायु परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।
एम.आर.साहनी,राइक्स व डेल्स: भू-तात्विक परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।
डी.डी.कौशम्बी: मोनजोदङो के लोगों की आद लगा कर लोगों की हत्या कर दी गयी।
गार्डन चाइल्ड व हृीलर: सैन्धव सभ्यता विदेशी आक्रमण से नष्ट हुई।

Wednesday, 16 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता का नगरनिर्माण योजना,प्रमुख शहर व नदियों के पास स्थित शहर (भाग-3)

नगर निर्माण योजनाः
                   सिन्धु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और इस सभ्यता के नगरों के अवशेषों से नगर-विन्यास का परिचय मिलता है। इस सभ्यता का नगर निर्माण जाल पद्धित पर आधारित था। नगर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर मजबूत प्राचीर बनाया जाता था। सङके एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई चौङी बनायी जाती थी जिनके किनारे नालियों की उत्तम व्यवस्था होती थी।
इस सभ्यता के नगरों में इटों का इस्तेमाल होता था जिसका अनुपात (लंबाईःःचौङाईःउचाई) 4:2:1 था।
रक्षा दिवार,चबुतरा व सङक बनाने में कच्ची ईट, विशाल भवन निर्माण में पक्की ईट, जल निकासी व्यवस्था में फन्नीदार ईट तथा मकान के किनारे, मकान के बाहरी हिस्से व मल निकाय व्यवस्था में L आकार की ईटों का इस्तेमाल होता था। 

यहाँ घरों का निर्माण एक सीध में सङको के किनारे व्यवस्थीत रूप से किया जाता था,जिनके दरवाजे गलियों या सहायक सङकों की ओर खुलते थे। भवन 2मंजिले भी होते थे। घरों में कई कमरे रसोईघर,स्नानघर तथा बिच में आंगन की व्वस्था होती थी। हङप्पा तथा मोहनजोदङो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहाँ शासक र्वग के लोग रहते थे। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक-एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहाँ ईटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। हङप्पा तथा मोहनजोदङो के भवन बङे होते थे। मोनजोदङो का अबतक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सर्वाजनिक स्नानागार,जिसका जलाशय दुर्ग के टिले में है। यह ईटों के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। यह 11.88 मीटर लंबा 7.01मीटर चौङा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरो पर तलाब तक जाने की सीङिया लगी है। बगल में कपङे बदलने के कमरे है। स्नानागार का फर्श पक्की ईटों का बना है। पास में पूरब दिशा की ओर एक कुआं है जिसका पानी निकालकर हौज मे डाला जाता था। हौज के कोने में नर्गम होता था। इस विशाल स्नानागार का उपयोग सार्वजनिक रूप से धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए होता था। मोनजोदङो की सबसे बङी संरचना वहाँँ का अनाज रखने का कोठार है,जो 45.71मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौङा है। हङप्पा के दुर्ग में कुल छः कोठार मिले है जो ईटों के चबूतरे पर दो पांतो में खङे है। यह सभी कोठार नदी के किनारे से कुछेक मीटर की दूरी पर है।
सिन्धु सभ्यता के प्रमुख शहर:
       शहर                     वर्तमान क्षेत्र
  मोनजोदङो             लरकाना जिला,सिंध प्रांत    
                                    (पाकिस्तान)                       
  हङप्पा                    साहिवाल जिला, पश्चिमी पंजा (पाकिस्तान)                     
  चन्हूदङो                सिंध(पाकिस्तान)                            
 लोथल                     अहमदाबाद(गुजरात)                      
 कालीबंगा                 हनुमानगढ़ (राजस्थान)                   
  बनवाली                   हिसार(हरियाणा)                           
  रंगपुर                       अहमदाबाद(गुजरात)                     
  रोपङ                       रूपनगर(पंजाब)                            
  कोटदीजी                 सिंध(पाकिस्तान)                          
 सुल्कागेंडोर               ब्लूचिस्तान(पाकिस्तान)                
   सुरकोटदा                  कच्छ(गुजरात)                            
   मांडा                        जम्मू-कश्मीर                               
  राखीगढ़ी                   हिसार(हरियाणा)                         
  आलमगीरपुर             मेरठ(उत्तर प्रदेश)                         
  धोलावीरा                  गुजरात 
नदियों के पास स्थित शहर:                                                 
 शहर                    नदी                                             
  लोथल                     भोगवा 
  मोहनजोदङो             सिंधु    
  कालीबंगा                घग्गर
  रोपङ                      सतलज
   हङप्पा                   रावी
  बनवाली                  सरस्वती
  चन्हूदङो                 सिंधु
  मांडा                      चेनाब
  रंगपुर                     मादर
  राखीगढ़ी                 घग्गर
  सूरकोटङा                सरस्वती
  आलमगीरपुर            हिंडन

Saturday, 12 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता का नामकरण व विस्तार (भारत का इतिहास भाग-2)

  • सिन्धु घाटी सभ्यता का नामकरण:सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। हङप्पा और मोहनजोदाङो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले है। अतः विद्धवानो ने इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक,नदियों के क्षेत्र में अाते है,पर बाद में
    रोपङ,लोथल,रंगापुर,कालीबंगा,बनमाली आदी क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र के बाहर थे। कई इतिहासकार इस सभ्यता को 'हङप्पा सभ्यता' नाम देना अधिक उचित मानते है क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में अवस्थित हङप्पा नामक आधुनिक स्थल में चला। हङप्पा का मुख्य क्षेत्र सिन्धु घाटी नहीं बल्कि सरस्वती तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था जो सिन्धु व गंगा के बिच स्थित था। इस लिए कुछ विद्वानों ने सिन्धु-सरस्वती सभ्यता भी कहते है। सिन्धुवासीयों ने प्रथम बार तांबे मे टीन मिलाकर कांसा तैयार किये। अतः इसे 'कांस्य युगीन सभ्यता' भी कहा जाता है। सिन्धु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रांति भी कहा जाता है,क्योंकि भारत में प्रथम बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुअा।
  • विस्तार:  इस सभ्यता का क्षेत्र संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से अनेक गुना बङा और विशाल था। इस परिपक्य सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ।इस प्रकार हङप्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब,सिन्ध और ब्लूचिस्तान के भाग ही नहीं, गुजरात,राजस्थान,हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में ब्लूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें समपूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था(उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में गुजरात के भोगतार तक और पश्चिम में अफगानिस्तान के सुत्कोगंडोर से पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ तक था और इसका क्षेत्रफल 12,88,600वर्ग किलोमीटर था।) पंजाब का हङप्पा तथा सिन्ध का
  • मोहनजोदाङो(शाब्दिक अर्थ-प्रेतों का टीला) दोनो ही स्थान
     वर्त्तमान में पाकिस्तान में है।दोनो एक दूसरे से 483 कि मी दूर थे और सिन्धु नदी द्रवारा जुङे हुए थे। तीसरा नगर मोनजोदाङो से 130किमी दक्षिण में चन्हूदङो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खम्भा की खाङी के ऊपर लोथल नामक स्थल पर। इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगा (शाब्दिक अर्थ- काले रंग की चुङीया) तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली।इन सभी स्थलो पर परिपक्य तथा उन्नत हङप्पा संस्कृति के दर्शन होते है। सुत्कोगंडोर तथा सुरकोटरा के समुंद्रतटीय नगरों मे भी इस संकृति की परिपक्य अवस्था दिखाई देती है। इन दोनो की विशेषता है कि एक-एक नगर दुर्ग का होना। इसके अतिरिक्त, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में अवस्थित धोलावीरा में भी किला है, और इस स्थल पर हङप्पा संस्कृति की तीनों अवस्थाएँँ मिलती हैं। उत्तर हङप्पा अवस्था गुजरात के काठियवाङ  प्रायद्धिप में रंगपुर और रोजङी स्थलो पर भी पायी गई है।
  • विभिन्न विद्वानों द्वारा सिन्धु सभ्यता का निर्धारण:
   काल                                           विद्वान
1. 2000-1500ई.पू.                        फेयर सर्विस
2. 2300-1750ई.पू.                        डी.पी. अग्रवाल
3. 2300-1700ई.पू.                         सी.जे. गैड
4. 2500-1500ई.पू.                         मार्टीमर हृीलर
5. 2800-2500ई.पू.                        अर्नेस्ट मैके
6. 2900-1900ई.पू.                        डेल्स
7. 3200-2700ई.पू.                         जॉन मार्शल
8. 3500-2700ई.पू.                         माधोस्वरुप वत्स

Thursday, 10 August 2017

भारत का इतिहास

भारत के इतिहास को तीन भागो मे बॉटा गया है।  
  1. प्रागैतिहासिक/पाषाण काल
  2. आध-ऐतिहासिक काल
  3. ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल: अधिकांश विद्वानों का मत है कि आज से लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व या इससे भी पहले प्राइमेट्स (नर वानर) से ही ऐसे प्राणी का जन्म हुआ जो मानव के समान था। धीरे-धीरे ये प्राणी वृक्षों से उतरकर अपने पीछले पैरों पर खङे होकर चलना सीख गए और पृथ्वी पर ही रहने लगे थे। अर्थात जिस काल की जानकारी के लिए लिखित और प्रमाणिक साधन उपलब्ध हैं उसे विद्वानों ने ऐतिहासिक काल का नाम दिया है तथा जिस काल की जानकारी के लिए हमें कोई लिखित या प्रमाणिक सामग्री प्राप्त नहीं है,उसे प्राक् ऐतिहासिक काल या प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है। प्राक् ऐतिहासिक काल के जो औजार एंव हथियार प्राप्त हुअा है वह पाषाण काल के हैं,इसलिए मानव इतिहास के प्रारंभिक काल को पाषाण काल की संज्ञा दी जाती है।
-प्रागैतिहासिक काल को तीन भागो मे बॉटा गया है।
  1. पुरापाषाण काल(आज्ञात काल से8000ई. पू.)
  2. मध्य पाषाण काल(8000ई.पू.से4000ई.पू.)
  3. नव पाषाण काल(4000ई.पू.से2500ई.पू.)
पुरापाषाण काल: 
  • इस काल को आखेटक के रुप में भी जाना जाता है।
  •  भारत में पुरापाषाणकालीन मनुष्य के शारीरिक अवशेष कही से नहीं प्राप्त हुए है।
  • मनुष्यों का जीवन पूर्ण रूप से शिकार पर निर्भर था।
  • इस काल के मानव को अग्नि का ज्ञान था परंतु अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे।
  • इस काल के मानव ग्रिटो जाति के थे।
 मध्य पाषाण काल:
  • भारत में मध्य-पाषाण काल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम1857ई. में हुई जब सी.एल.कार्लाइज ने विन्ध्य क्षेत्र से लघु पाषाण उपकरण खोजे थे।
  • मध्य पाषाण काल के औजार छोटे पत्थरों से बने हुए है। इनको माइक्रोलिपिक या सूक्ष्मपाषाण कहा जाता है।
  • भारत में मानव अस्थिपंजर सर्वप्रथम मध्यपाषाण काल से प्राप्त हुअा था।
  • भीलवाङा जिले में कोठारी नदी के तटपर स्थित बागौर भारत का सबसे बङा मध्यपाषाणिक स्थल है
  • पशुपालन मध्य पाषाण काल से ही शुरु हुआ था। इसका प्रथम साक्ष्य आमदगढ़ प्राप्त हुए हैं।
  • मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी के निकट मध्य पाषाण युग के 2 शैलाश्रय मिले जिनका नाम 1. जम्बूदीप 2. डेरोथोद्वीप हैं।
नवपाषाण काल:
  • यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ प्रयुक्त होता है। इस लिए इस काल को 'नवपाषाण काल' भी कहा जाता है। भारत में नवपाषाण काल में पुरातात्विक खोज प्रारंभ करने का श्रेय डॉ. प्राइमरोज को जाता है,जो 1842 ई.में कर्नाटक के लिंग सुगुर नामक स्थल से उपकरण खोजे थे।
  • सर्वप्रथम 1860 में 'ले मेसुरियर' ने उस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की लैंस नदी की घाटी से प्राप्त किये।
  • नवपाषाण युगीन प्राचीनतम बस्ती पाकिस्तान में स्थित ब्लूचिस्तान प्रांत में मेहरगढ़ में है।
  • इस युग के लोग पालिशदार पत्थर के औजार व हथियारों का प्रयोग करते थे।
  • इलाहाबाद में स्थित कोहलडिहवा एक मात्र ऐसा नव पाषाणिक पुरास्थल है जहां से चावल या धान का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए है।
  • नव पाषाण युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय थे। ये लोग स्थायी घर बनाकर रहने लगे।
  • पहिये व कृषि का अविष्कार नव पाषाण युग में हुअा था। 
आध-ऐतिहासिक काल:
आध-ऐतिहासिक काल को दो खण्डों में बॉटा गया है।
  1. सिन्धु घाटी सभ्यता
  2. वैदिक काल
सिन्धुघाटी सभ्यता( 2500BC-1750BC)
  • भारत के इतिहास की शुरुआत सिन्धु घाटी सभ्यता से मानी जाती है। सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओ में से एक प्रमुख सभ्यता है। हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता को इस नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हङप्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे तथा इसके आरंभिक स्थलोंं में से अधिकांश सिन्धु नदी के किनारे स्थित थे।हङप्पा इसके प्रमुख केन्द् थे। यह भारतीय उप-महाद्वीप में 'प्रथम नगरीय क्रांति' के अवस्था को दर्शाति है। सर्वप्रथम चालर्स मैसेन ने 1826ई. मे हङप्पा नामक स्थल पर एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिलने के प्रमाण की पुष्टि किये थे। कनिघंम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1921में दयाराम साहनी ने हङप्पा का उत्खनन किया।प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता हैं। प्रथम बार कास्य के प्रयोग के कारण इसे कास्य सभ्यता भी कहा जाता हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के 1400 केन्दों को खोजा जा चुका हैं जिसमे से 925 केन्द् भारत में हैं।80 प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदीयों के आस-पास है।