आर्यो का भारत आगमन:
'आर्य' शब्द मूलतः 'अरि' से निकला है, जिसका अर्थ 'विदेशी' तथा 'अजनबी' होता है। 'आर्य' शब्द का अर्थ 'नवागंतुको से संबद्ध' तथा 'उच्चकुल-उत्पन्न' भी होता है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों का मूल निवास आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में था जो वर्त्तमान में यूरेशिया (यूरोप+ एशिया) कहलाता है। भारत में आर्यों की जानकारी ऋग्वेद से मिलती है जो हिंद-यूरोपीय भाषाओ का सबसे पुराना ग्रंथ है इस वेद में आर्य शब्द का उल्लेख 36 बार में हुअा है। जो वस्तुत: संस्कृतिक समुदाय का घोतक है।
भारत में आर्यों का आगमन पर विद्वानों में मतभेद है।
विक्टरनित्य ने आर्यों के आगमन की तिथी 2500ई. निधारित की है जबकि बालगंगाधर-तिलक ने इसकी तिथी 6000 ई. पू. निर्धारित की है। मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथी 1500ई. पू. है। आर्य भारत में सबसे पहले सप्त सिन्धु प्रदेश में सबसे थे। इसे सप्तसिन्धु या सात नदियों ,चेनाब,रावी,
उत्तर-वैदिक काल:
उत्तर-वैदिक काल के दौरान आर्यों के क्षेत्र का विस्तार हुअा। आर्यों का युमना,गंगा,और सदानीरा जैसे सिंचित उपजाऊ मैदानों पर पूर्ण नियंत्रण था।
1000ई.पू. से 600ई.पू. तक के काल को 'उत्तर वैदिक काल' माना जाता है। इस काल में सामवेद,यजुवेद,अर्थवेद एंव ब्रहमण,अरण्यक,एंव उपनिषद की रचना हुई।
उत्तर-वैदिक का भौगोलिक विस्तार क्षेत्र:
'आर्य' शब्द मूलतः 'अरि' से निकला है, जिसका अर्थ 'विदेशी' तथा 'अजनबी' होता है। 'आर्य' शब्द का अर्थ 'नवागंतुको से संबद्ध' तथा 'उच्चकुल-उत्पन्न' भी होता है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों का मूल निवास आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में था जो वर्त्तमान में यूरेशिया (यूरोप+ एशिया) कहलाता है। भारत में आर्यों की जानकारी ऋग्वेद से मिलती है जो हिंद-यूरोपीय भाषाओ का सबसे पुराना ग्रंथ है इस वेद में आर्य शब्द का उल्लेख 36 बार में हुअा है। जो वस्तुत: संस्कृतिक समुदाय का घोतक है।
भारत में आर्यों का आगमन पर विद्वानों में मतभेद है।
विक्टरनित्य ने आर्यों के आगमन की तिथी 2500ई. निधारित की है जबकि बालगंगाधर-तिलक ने इसकी तिथी 6000 ई. पू. निर्धारित की है। मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथी 1500ई. पू. है। आर्य भारत में सबसे पहले सप्त सिन्धु प्रदेश में सबसे थे। इसे सप्तसिन्धु या सात नदियों ,चेनाब,रावी,
उत्तर-वैदिक काल:
उत्तर-वैदिक काल के दौरान आर्यों के क्षेत्र का विस्तार हुअा। आर्यों का युमना,गंगा,और सदानीरा जैसे सिंचित उपजाऊ मैदानों पर पूर्ण नियंत्रण था।
1000ई.पू. से 600ई.पू. तक के काल को 'उत्तर वैदिक काल' माना जाता है। इस काल में सामवेद,यजुवेद,अर्थवेद एंव ब्रहमण,अरण्यक,एंव उपनिषद की रचना हुई।
उत्तर-वैदिक का भौगोलिक विस्तार क्षेत्र:
- पंजाब से आर्यजन गंगा-यमुना दोआब के अंतर्गत संपूर्ण पचिमी उत्तर प्रदेश में फैल गए थे। दो प्रमुख कबीले भारत और पुरू एक होकर कुरू नाम से विदित हुए।
- आरंभ में वे लोग दोआब के ठीक छोर पर सरस्वती और दृष्टावति नदियों के प्रदेश में बसे। जल्द ही कुरूओं ने दिल्ली क्षेत्र और दोआब के ऊपरी भाग पर अधिकार कर लिया,जो कुरूक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध हुअा। धीरे-धीर वे पंचालों से भी मिल गए जो दोआब के मध्य भाग पर अधिकार प्राप्त किये और इस प्रकार कुरू-पंचालों की सत्ता दिल्ली क्षेत्र पर और दोआब के ऊपरी भाग और मध्य भाग पर फैल गई।
- हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया जो मेरठ जिले में पङता है। कुरू कुल का इतिहास भारत- युद्ध से प्रसिद्ध है जिस पर महाभारत नाम का विख्यात महाकाव्य है। यह माना जाता है कि भारत युद्ध 950ई. पू. के आस-पास कौरवों और पांडवों के बिच हुअा था, हालांकि ये दोनों कुरू कुल के ही थे। इस युद्ध के फलस्वरूप वस्तुतः सारे कुरूवंशियों का नाश हे गया।
- प्राचीन कथाओ के अनुसार जानते हैं कि हस्तिनापुर बाढ़ में वह गया और कुरू वंश से जो जीवित रहे वे इलाहाबाद के पास कौशाबी जा कर बस गए।
- उत्तर-वैदिक काल का अंत होते-होते 600ई.पू. के आस-पास वैदिक लोग दोआब से पूरब की ओर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कोसल और उत्तरी बिहार के विदेह में फैले।
- प्राचीन वैदिक आर्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। ये दूध,मांस और चमङा प्राप्त करने के लिए है गाय,भैंस,भेङ,बकरियां और घोङे पालते थे। ऋग्वेद में मिले साहित्यिक साक्ष्यों के विशलेषन से अनेक साक्ष्य मिले हैं।
- धनी व्यक्ति को गोमत कहते थे और उनकी बेटी को दुहित्री जिसका शाब्दिक अर्थ जो गाय का दुध दुहती है। गवेषणा शब्द का शाब्दिक अर्थ गायों की खोज करना है, परंतु इस शब्द का अर्थ लङाई भी होता है, क्योंकि पशुओं के कारण अनेक लङाईयां भी लङी गई थी।
- उत्तर-वैदिक काल के लोग खेती की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ किए थें इसमे यह भी कहा गया कि हल चलाने के लिए 6 व 8 जोङे बैल जोते जाते थे। भैंसे को खेती के उद्धेश्य से पाले जाते थे।
- वैदिक लेखों में समुद्री यात्राओं का उल्लेख है। यह ये दर्शाता है कि वर्तमान का समुद्री व्यापार आर्यन के द्धारा शुरु किया गया था।
- आर्यन ने सिक्कों का प्रयोग नहीं किया परंतु सोने की मुद्राओं के लिए विशेष सोने के वजनों का प्रयोग किया गया। सतमाना,निष्का,कौशांभी,काशी और विदेहा प्रसिद्ध व्यापार थे।
- धन उधार देना एक फलता-फूलता व्यापार था। श्रेस्थिन शब्द यह बताता है कि इस युग में सम्पन्न व्यापारी ये और शायद वे सभा के रूप में संगठित थे।
- जमीन पर बैल गाङी का प्रयोग सामान ले जाने के लिए किया जाता था। विदेशी समान के लिए नावों और समुद्री जहाजों का प्रयोग किया जाता था।
- चाँदी का इस्तेमाल बढ़ गया था और उससे आभूषण बनाए जाते थे।
Nice
ReplyDeleteVery good
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