Thursday, 14 September 2017

जैन धर्म

6वींं शताब्दी ई.पू. में गंगाघाटी में जहां एक तरफ साम्राज्यवाद का उदय हो रहा था,एक विशाल सुसंगठित साम्रज्य की नींव रखी जा रही थी, ठीक उसी समय, अनेक नए धार्मिक संप्रदायों का उदय हो रहा था। इस युग के करीब 62 धार्मिक संप्रदाय है। इनमें से कई संप्रदाय पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले विभिन्न समुदायों में प्रचलित धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठान- विधियों पर आधारित थे। इनमें जैन संप्रदाय और बौद्ध संप्रदाय सबसे महत्वपूर्ण थे, और ये दोनों धार्मिक सुधार के परम शक्तिशाली आंदोलन के रूप में उभरे।
वर्धमान महावीर और जैन संप्रदाय
 जैन धर्म के प्राचीनतम सिद्धांतों के उपदेष्टा तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ माने जाते हैं जो वाराणसी के निवासी थे। वे राज्य सुख को छोङ संन्यासी हो गए किंतु यथार्थ में धर्म की स्थापना
उनके आध्यात्मिक शिष्य वर्धमान महावीर ने की।
         महान् सुधारक वर्धमान महावीर और गौतम बुद्ध का ठीक-ठीक समय निश्तित करना  कठिन है। एक परंपरा के अनुसार वर्धमान महावीर का जन्म 540ई.पू. में वैशाली के पास किसी गांव में हुअा। वैशाली की पहचान उत्तर बिहार में इसी नाम के नवस्थापित जिले में अवस्थित बसाढ़ से की गई है। उनके पिता सिद्धार्थ क्षत्रिय कुल के प्रधान थे। उनकी माता का नाम त्रिशला था जो बिम्बिसार के ससुर लिच्छवि-नरेश चेतक की बहन थी। इस प्रकार महावीर के परिवार का संबंध मगध के राजपरिवार से था। उच्च कुलों से संबंध रखने के कारण अपने र्धम-प्रसार के क्रम में उन्हें राजाओं और राजसचिवों के साथ संपर्क करना आसान था। आरंभ में महावीर गृहस्थ्य जीवन में थे, किंतु सत्य की खोज में वे 30वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन का परित्याग करके संन्यासी हो गए। 12वर्षों तक वे जहाँ-तहाँ भटकते रहे। वे एक गांव में एक दिन से अधिक और एक शहर में पांच दिन से अधिक नहीं टिकते थे। कहा जाता है कि अपनी बारह काल की लंबी यात्रा के दौरान उन्होंने एक बार भी वस्त्र नहीं बदले किंतु जब 42वर्ष की अवस्था में उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया तो उन्होंने वस्त्र का एकदम त्याग ही कर दिया। कैवल्य द्वारा उन्होंने सुख-दुख पर विजय प्राप्त की। इसी विजय के कारण वे महावीर कहलाए और उनके अनुयायी जैन कहलाते है। कोसल, मगध, मिथिला, चंपा आदि प्रदेशों में घूम-घूम कर वे अपने धर्म का प्रचार 30वर्ष तक करते रहे। उनका निर्वाण 468ई.पू. में बहत्तर साल की उम्र में आज की राजगीर के समीप पावापुरी में हुअा था।
 दूसरी परंपरा के अनुसार उनका देहांत 527ई. पू. में हुअा। परंतु पुरातात्विक साक्ष्य के आधार पर उन्हें निश्चित रूप से छठी शताब्दी ई.पू. में नहीं रखा जा सकता है। जिन नगरों और  अन्य वासस्थानों से उनका संबंध था उनका उदय 500ई.पू. तक नहीं हुआ था।
जैन धर्म के सिद्धांत
   जैन धर्म के पांच व्रत हैं : (1) अहिंसा या हिंसा नहीं करना, (2) अचौर्य या चोरी नहीं करना, (3) अमृषा या झूठ न बोलना, (4) अपरिग्रह या संपत्ति अर्जित नहीं करना,और (5) ब्रह्मचर्य या इन्द्रिय निग्रह करना। कहा जाता है कि इनमें चार व्रत पहले से चले आ रहे थे, महावीर ने केवल पाँचवाँ व्रत जोङे। जैन धर्म में अहिंसा या किसी प्राणी को न सताने के व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। कभी-कभी इस व्रत के विचित्र परिणाम दिखाई देते हैं,जैसे कुछ जैन धर्मावलंबी राजा पशु की हत्या करने वालों को फांसी पर चढ़ा देते थे। महावीर के पूर्व तीर्थकर पाश्र्व ने तो अपने अनुयायियों को निचले और ऊपरी अंगो को वस्त्र से ढकने की अनुमति दी थी, पर महावीर ने वस्त्र का सर्वथा त्याग करने का आदेश दे दिया। इसका आशय यह था कि वे अपने अनुयायियों के जीवन में और भी अधिक संयम लाना चाहते थे। इसके चलते, बाद में जैन धर्म दो संप्रदायों में विभक्त हो गया- श्वेताम्बर अर्थात सफेद वस्त्र धारण करने वाले, और दिगम्बर अर्थात नग्न रहने वाले।
  जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है,पर उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है। बौद्ध धर्म में वर्णव्यवस्था की जो निंदा है वह इस धर्म में नहीं है। महावीर के अनुसार, पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य या पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है। महावीर ने चाण्डालों में भी मानवीय गुणों का होना संभव बताया है। उनके मत में शुद्ध और अच्छे आचरण वाले निम्न जाति के लोग भी मोक्ष पा सकते हैं। जैन धर्म में मुख्यतः सांसारिक बंधनो से छुटकारा पाने के उपाय बताए गए हैं। ऐसा छुटकारा या मोक्ष पाने के लिए कर्मकांडीय अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है, यह सम्यक् ज्ञान,सम्यक् ध्यान और सम्यक् आचरण से प्राप्त किया जा सकता है। ये तीनों जैन धर्म का त्रिरत्न अर्थात तीन जौहर माने जाते हैं।
 जैन धर्म में युद्ध और कृषि दोनों वर्जित हैं, क्योंकि दोनों में जीवों की हिंसा होती है। फलतः जैन धर्मावलम्बियों में व्यापार और वाणिज्य करने वाले की संख्या अधिक हो गयी।

Thursday, 7 September 2017

वैदिक सभ्यता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. आर्य भारत में सबसे पहले कहा बसे थे? - सप्त सिन्धु प्रदेश
  2. आर्यो का मुख्य निवास स्थान कहा माना जाता है? - आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र और यूरेशिया
  3. 'आर्य' शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है? - श्रेष्ठ या कुलीन
  4. 'आर्य' शब्द किस समूह को इंगित करता है? - नृजति समूह को
  5. प्राचीनतम वेद कौन-सा है? - ऋग्वेद
  6. ऋग्वैदिक आर्य किसकी पूजा करते थे? - प्रक्रति की
  7. ऋग्वैदिक काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता कौन थे? - इन्द्र
  8. ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था? - पशुपालन
  9. गायत्री मंत्र का उल्लेख किस वेद में है? - ऋग्वेद
  10. ऋग्वैदिक आर्यों की कौन-सी भाषा थी? -संस्कृत
  11. ऋग्वैदिक काल में सबसे प्राचीन संस्था कौन-सी थी? - विदक
  12. ऋग्वेद में उल्लेखित करीब 25 नदियों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी कौन-सी थी? - सरस्वती नदी
  13. ऋग्वैदिक युगीन नदी 'परूष्णी' का महत्व क्यो है? - दाशराज्ञ युद्ध के कारण
  14. हल सम्बंधी अनुष्ठान का पहला व्याख्यात्मक वर्णन कहा से मिला है? - शतपत ब्राहमण में
  15. उत्तरवैदिक काल के लोगों ने किस धातु की खोज की थी? - लोहा
  16.  ऋग्वेद में कुल कितनी ऋचाएँ हैं? - 10462 ऋचाएँ हैं।
  17. ऋग्वेद में इंद्र के लिए कितनी ऋचाएँ हैं? - 250 ऋचाएँ हैं।
  18. ऋग्वेद में अग्नि के लिए कितनी ऋचाएँ हैं? - 200 ऋचाएँ हैं
  19. 'अथर्व' का अर्थ क्या है? - पवित्र जादु
  20. प्रथम विधि निर्माता कौन हैं? -मनु
  21. मीमांसा दर्शन के प्रतिपादन कौन हैं? -जैमिनी
  22. आदि काव्य की संज्ञा किस ग्रंथ को दी जाती है? - रामायण को
  23. 'व्रिही' शब्द  किसके लिए प्रयोग होता है? -चावल के लिए
  24. वेदांत दर्शन के प्रतिपादन कौन हैं? - बादरायण
  25. 'दांशराज' युद्ध किस नदी के तट पर लङा गया? - परूष्णी
  26. 850ई.पू. - 600ई.पू. का काल युग क्या कहलाता है? -ब्राह्राण युग
  27. कर्म का सिद्धांत किससे संबंधित है? - चिकित्सा से
  28. वैदिक युग की शासन प्रणाली क्या थी? - गणतंत्र शासन प्रणाली
  29. ऋग्वेद में कुल कितने मंडल है? - 10
  30. ऋग्वैदिक काल में विनिमय के माध्यम के रुप में किसका प्रयोग किया जाता है? - गया
  31. 'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई? - उत्तर-वैदिक काल में
  32. उत्तरवैदिक काल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता कौन थे? - प्रजापति
  33. भारत का आदर्श राष्टृीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' कहाँ से लिया गया है? - मुंडकोपनिषद
  34. कौन-सी फसल का ज्ञान वैदिक काल के लोगों को नहीं था? - तम्बाकू
  35. सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है? - जाबालोपनिष्द से
  36. ऋग्वेद के दसवें मंडल में किसका उल्लेख पहली बार मिलता है? - शूद्र
  37. किस वेद का संकलन ऋग्वेद पर आधारित है? - सामवेद
  38. उपनिषद काल के राजा अश्वपति कहाँ के शासक थे? - केकय
  39. यज्ञ संबंधी विधि-विधानों का पता किस वेद से चलता है? - यजुर्वेद से
  40. वैदिक युग में प्रचलित लोकप्रिय शासन प्रणाली क्या थी? - गणतंत्र
  41. कौन-सी भारतीय दर्शन की आरंभिक विचारधारा है? - सांख्य 
  42. किस वेद मे जादुई माया और वशीकरण का वर्णन है? - अथर्ववेद
  43. 'प्रस्थानत्रयी' में शामिल नहीं है? - भागवत
  44. 'सभा' और 'समिति' प्रजापति की दो पुत्रियां थी इसका उल्लेख किस ग्रंथ में मिलता है? - अथर्ववेद में
  45. उत्तर-वैदिक कालीन ग्रंथो में किस आश्रम का उल्लेख नहीं मिलता है? - -संयास
  46. आर्यो के मूल निवास स्थान के बारे में सर्वाधिक मान्य मत कौन-सा है? - मध्य एशिया में बैक्टृिया
  47. वेदों को 'अपौरूषेय' क्यों कहा जाता है? - क्योंकि वेदों की रचना देवताओं द्धारा की गई है।
  48. ऋग्वेद में 'निष्क' शब्द का प्रयोग किस आभूषण के लिए किया गया है? - गले का बार
  49. ऋग्वेद में किस अपराध का सबसे अधिक उल्लेख किया गया है? - पशु चोरी
  50. ऋग्वेद का कौन-सा मंडल पूर्णणतः सोम को समर्पित है? - नौवाँ मंडल
  51. वेदों की संख्या कितनी है? - चार
  52. किस वेद में प्राचीन वैदिक युग की संस्कृति के बारे में सूचना दी गई है? - ऋग्वेद
  53. वैदिक गणित का महत्वपूर्ण अंग कौन-सा सूत्र है? शुल्व सूत्र
  54. विष्णु के दस अवतारों की जानकारी का स्रोत किस पुराण में है? - मत्स्य पुराण
  55. किस उपनिषद को बुद्ध से भी प्राचीन माना जाता है? - कठोपनिषद
  56. ऋग्वैदिक काल की सबसे प्राचीन राजनीतिक संस्था कौन-सी थी? - सभा
  57. उत्तर-वैदिक काल के वेद विरोधी और ब्राहमण विरोधी अध्यापकों को किस नाम से जाना जाता है? - श्रमन
  58. ऋग्वेद में कुल कितनी सुक्तियाँ है? - 1028
  59. भारत में आने वाले आर्य क्या कहलाते है? - -इंडो आर्य
  60. ऋग्वेद में 'जन' और 'विश' का उल्लेख क्रमशः कितनी बार हुअा है? - 275,170

Tuesday, 5 September 2017

वेद व वैदिक युग में प्रयुक्त शब्द (वैदिक काल अथवा वैदिक सभ्यता: भाग-3)

वेद:
     वेद विद् शब्द से बना है। जिसका अर्थ ज्ञान होता है। यह सूक्तों,प्राथनाओं,स्तुतियों,मंत्र-तंत्रों तथा यज्ञ संबंधी सूत्रों के संग्रह है। वेदों को संहिता भी कहा जाता है क्योंकि यह वेदव्यास द्धारा संकलित किये गये थे। वेदों का एक नाम 'श्रुति' भी है,क्योंकि संकलित किये जाने से पूर्व यह गुरू-शिष्य परम्परा में कण्ठस्थ कराये जाते थे।
वेदों की संख्या:
  1.   ऋग्वेद(सर्वाधिक प्राचिन)
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद
ऋग्वेद:
  • यह सूक्तों का संग्रह है
  • इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये गये मंत्रों का संग्रह है।
  • रचना: सप्तसैंधव प्रदेश में हुई।
  • संकलनकर्त्ता: महर्षि कृष्ण द्वैयापन (उपनाम वेदव्यास)
  • विवरण: इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त तथा 10462 मंत्र अथवा श्लोक हैं। ऋग्वेद के 3 पाठ(1.साकल:10 मण्डल तथा 1017 सूक्त, 2.बालखिल्य: 11 सूक्त, 3. वाष्कल: 56 मंत्र ) मिलते हैं।
  • ऋग्वेद के 10 मंडलों में दूसरे से 7वें मंडल तक प्राचीन माने जाते है; जिन्हें वंश मंडल कहा गया है। 
  • ऋग्वेद के ब्राहाण: एएेतरेय व ककौशतिकी।
  • आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद कहा जाता है।
  • ऋग्वेद की सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती थी। इसे नदीतम कहा गया है।
  • ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख 3 बार एंव गंगा का उल्लेख 1बार 10वें मंडल में मिलता है।
  • ऋग्वेद में पुरूष देवताओं की प्रधानता है। इंद्र का वर्णन सबसे अधिक 250 बार किया गया जबकि इंद्र को पुरंदर कहा गया है जिसका अर्थ दुर्ग को तोङने वाला है जबकि अग्नि का 200 बार उल्लेख मिलता है।
  • 'अस्तों मा सद्गमय' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
  • ऋग्वेद में दस्थुहत्या शब्द का उल्लेख मिलता है पर दासहत्या का नहीं। ऋग्वेद में किसी तरह के न्यायाधिकारी का उल्लेख नहीं है। ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलती है। अवेस्ता ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रंथ है।
यजुर्वेद:
  • यजु का अर्थ यज्ञ होता है। इसमें यज्ञ की विधियों का प्रतिपादन किया गया है। इसमें यज्ञ बलि संबंधी मंत्रों का वर्णन है। 
  • यजुर्वेद के 2 प्रधान रूप: 1. कृष्ण यजुर्वेद-इसकी 4 शाखायें हैं। (1) काठक, (2) कपिष्ठल, (3) मैत्रेयी, (4) तैतित्तरीय संहिता। 2. शुक्ल यजुर्वेद इसे 'वाजसनेयी संहिता' भी कहते है।
  • 2 शाखायें: (1) कण्व, (2) ममध्यान्दिन।
  • शुक्ल यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) को ही अधिकांश विद्वान वास्तविक यजुर्वेद मानते है।
  • यजुर्वेद का अंतिम अध्याय 'ईशोपनिष्द 'अध्यात्म चिन्तन से संबंधित है।
  • यजुर्वेद का आरण्यक: तैत्तिरीय है।
  • यजुर्वेद में हाथियों के पालने का उल्लेख है।
  • यजुर्वेद का ऋत्विक 'अध्वर्यु' कहलाता था जिसका कार्य इस वेद के मौलिक गध भाग को पढ़ना तथा यज्ञ संबंधी कार्य करना था।
  • धनुर्वेद को 'यजुर्वेद का उपवेद' कहा जाता है। यजुर्वेद में सर्वप्रथम राजसूय तथा वाजपेय यज्ञ का उल्लेख है।
सामवेद:
  • साम का अर्थ 'गान' से है।
  • साम वेद से ही सर्वप्रथम 7 स्वरों ( सा....रे....गा..... मा ) की जानकारी प्राप्त हुई थी। इसलिए इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है।
  • गंधर्ववेद सामवेद का उपवेद है।
  • 3 शाखायें: 1.कौथुम 2. राणायनीय 3. जैमिनीय।
  • 'कौथुम' शाखा अधिक प्रचलित तथा प्रमाणिक है।
  • पुराणों में सामवेद की सहस्त्र शाखाओं का उल्लेख है।
  • सामवेद के 2 भाग है 1.पूर्वाचिक 2.उत्तरार्चिक।
  • सामवेद व अथर्ववेद के कोई आरण्यक नहीं है।
  • सामवेद के ब्राहाण: पंचविश, षडविश,जैमिनीय तथा छान्दोग्य।
  • सामवेद का ऋत्विक 'उद्गाता' कहलाता था जिसका कार्य ऋचाओं का सस्वरगान करना था।
  • सामवेद का उपवेद 'गन्धर्ववेद' कहलाता है।
अथर्ववेद:
  • अथर्ववेद को ब्राहावेद (श्रेष्ठ वेद ) भी कहा जाता है।अथर्वा ऋषि के नाम पर इस वेद का नाम अथर्ववेद पङा।
  • अथर्ववेद का ब्राहाण 'गोपथ' है इसमें याज्ञिक अनुष्ठानों का वर्णन नहीं है।
  • अथर्ववेद में 20 अध्याय,731सूक्त व 6000 मंत्र है। इसमें वशीकरण, जादू-टोना, भूत-प्रेतोंऔषधियों से सम्बद्ध मंत्रों का वर्णन है।
  • अथर्ववेद के उपनिषद् मुण्डक, माण्डूक्य और प्रश्न है।
  • अथर्ववेद में 'मगध' तथा 'अंग' क्षेत्र में रोग फैलने की कामना की गयी है।
  • अथर्ववेद में कुरू के राजा परीक्षित का उल्लेख है। जिन्हें मृत्युलोक का देवता बताया गया है।
  • अथर्ववेद का उपवेद 'शिल्पवेद' कहलाता है।
  • काशी का प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद में ही मिलता है।
  • अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ब्रहा कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में सभासमिति को प्रजापति की 2पुत्रियां कहा गया है।
वैदिक युग में प्रमुख प्रयुक्त शब्द:
अर्थ                                    शब्द
1.राजा                                गोप्ता
2.धनी                                 गोमत
3.दूरी                                  गवयुति
4.समय                               गोधूलि
5.अतिथि                            गोहंता/गोहन
6.युद्ध                                 गविष्ट, गेसु, गम्य
7.पुत्री                                 दुहिता
8.गाय                                 अधन्या (जिसका वध न हो)
9.बढ़ई                                तक्षन
10.जुलाहा                           वाय
11.नाई                               वाप्ती
12.हलवाहा                         किवास
13.अनाज कोठार                 स्थीवी
14.मरूस्थल                        धन्व
15.अनाज                          धन्य
16.उर्वरा                            जुते हुए खेत
17.खिल्य                           पशुचारण योग भुमि/चारागाह
18.कुल्या                           बङी नहर
19.लांगल                           हल के लिए
20.करीष                            गोबर की खाद
21.सीता                             हल से बनी नालियां

Friday, 1 September 2017

आर्यो का भारत आगमन व उत्तर-वैदिक काल (भाग-2)

आर्यो का भारत आगमन:
'आर्य' शब्द मूलतः 'अरि' से निकला है, जिसका अर्थ 'विदेशी' तथा 'अजनबी' होता है। 'आर्य' शब्द का अर्थ 'नवागंतुको से संबद्ध' तथा 'उच्चकुल-उत्पन्न' भी होता है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों का मूल निवास आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में था जो वर्त्तमान में यूरेशिया (यूरोप+ एशिया) कहलाता है। भारत में आर्यों की जानकारी ऋग्वेद से मिलती है जो हिंद-यूरोपीय भाषाओ का सबसे पुराना ग्रंथ है इस वेद में आर्य शब्द का उल्लेख 36 बार में हुअा है। जो वस्तुत: संस्कृतिक समुदाय का घोतक है।
भारत में आर्यों का आगमन पर विद्वानों में मतभेद है।
विक्टरनित्य ने आर्यों के आगमन की तिथी 2500ई. निधारित की है जबकि बालगंगाधर-तिलक ने इसकी तिथी 6000 ई. पू. निर्धारित की है। मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथी 1500ई. पू. है। आर्य भारत में सबसे पहले सप्त सिन्धु प्रदेश में सबसे थे। इसे सप्तसिन्धु या सात नदियों ,चेनाब,रावी,
उत्तर-वैदिक काल:
उत्तर-वैदिक काल के दौरान आर्यों के क्षेत्र का विस्तार हुअा। आर्यों का युमना,गंगा,और सदानीरा जैसे सिंचित उपजाऊ मैदानों पर पूर्ण नियंत्रण था। 
1000ई.पू. से 600ई.पू. तक के काल को 'उत्तर वैदिक काल' माना जाता है। इस काल में सामवेद,यजुवेद,अर्थवेद एंव ब्रहमण,अरण्यक,एंव उपनिषद की रचना हुई।
उत्तर-वैदिक का भौगोलिक विस्तार क्षेत्र:
  • पंजाब से आर्यजन गंगा-यमुना दोआब के अंतर्गत संपूर्ण पचिमी उत्तर प्रदेश में फैल गए थे। दो प्रमुख कबीले भारत और पुरू एक होकर कुरू नाम से विदित हुए।
  • आरंभ में वे लोग दोआब के ठीक छोर पर सरस्वती और  दृष्टावति नदियों के प्रदेश में बसे। जल्द ही कुरूओं ने दिल्ली क्षेत्र और दोआब के ऊपरी भाग पर अधिकार कर लिया,जो कुरूक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध हुअा। धीरे-धीर वे पंचालों से भी मिल गए जो दोआब के मध्य भाग पर अधिकार प्राप्त किये और इस प्रकार कुरू-पंचालों की सत्ता दिल्ली क्षेत्र पर और दोआब के ऊपरी भाग और मध्य भाग पर फैल गई।
  • हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया जो मेरठ जिले में पङता है। कुरू कुल का इतिहास भारत- युद्ध से प्रसिद्ध है जिस पर महाभारत नाम का विख्यात महाकाव्य है। यह माना जाता है कि भारत युद्ध 950ई. पू. के आस-पास कौरवों और पांडवों के बिच हुअा था, हालांकि ये दोनों कुरू कुल के ही थे। इस युद्ध के फलस्वरूप वस्तुतः सारे कुरूवंशियों का नाश हे गया।
  • प्राचीन कथाओ के अनुसार जानते हैं कि हस्तिनापुर बाढ़ में वह गया और कुरू वंश से जो जीवित रहे वे इलाहाबाद के पास कौशाबी जा कर बस गए।
  • उत्तर-वैदिक काल का अंत होते-होते 600ई.पू. के आस-पास वैदिक लोग दोआब से पूरब की ओर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कोसल और उत्तरी बिहार के विदेह में फैले। 
अर्थव्यवस्था:
  • प्राचीन वैदिक आर्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। ये दूध,मांस और चमङा प्राप्त करने के लिए है गाय,भैंस,भेङ,बकरियां और घोङे पालते थे। ऋग्वेद में मिले साहित्यिक साक्ष्यों के विशलेषन से अनेक साक्ष्य मिले हैं।
  • धनी व्यक्ति को गोमत कहते थे और उनकी बेटी को दुहित्री जिसका शाब्दिक अर्थ जो गाय का दुध दुहती है। गवेषणा शब्द का शाब्दिक अर्थ  गायों की खोज करना है, परंतु इस शब्द का अर्थ लङाई भी होता है, क्योंकि  पशुओं के कारण अनेक लङाईयां भी लङी गई थी।
  • उत्तर-वैदिक काल के लोग खेती की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ किए थें इसमे यह भी कहा गया कि हल  चलाने के लिए 6 व 8 जोङे बैल जोते जाते थे। भैंसे को खेती के उद्धेश्य से पाले जाते थे।
  • वैदिक लेखों में समुद्री यात्राओं का उल्लेख है। यह ये दर्शाता है कि वर्तमान का समुद्री व्यापार आर्यन के द्धारा शुरु किया गया था।
  • आर्यन ने सिक्कों का प्रयोग नहीं किया परंतु सोने की मुद्राओं के लिए विशेष सोने के  वजनों का प्रयोग किया गया। सतमाना,निष्का,कौशांभी,काशी और विदेहा प्रसिद्ध व्यापार थे।
  • धन उधार देना एक फलता-फूलता व्यापार था। श्रेस्थिन शब्द यह बताता है कि इस युग में सम्पन्न व्यापारी ये और शायद वे सभा के रूप में संगठित थे।
  • जमीन पर बैल गाङी का प्रयोग सामान ले जाने के लिए  किया जाता था। विदेशी  समान के लिए नावों और समुद्री जहाजों का प्रयोग किया जाता था।
  • चाँदी का इस्तेमाल बढ़ गया था और उससे आभूषण बनाए जाते थे।